पंडवानी नाट्य शैली

 

नीलम द्विवेदी

पंडवानी छत्तीसगढ़ की एकल नाट्य शैली है जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात पांडवकथा, जिसमे गायन व नृत्य के द्वारा महाभारत की कथा सुनाई जाती है। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा रही है।परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में "किंकनी" होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू होता है। तीजन बाई ने पंडवानी को न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धि दिलाई।

पंडवानी की दो शैलियाँ हैं - एक है कापालिक शैली जो गायक गायिका के स्मृति में या "कपाल"में विद्यमान है। दूसरी है वेदमती शैली जिसका आधार है शास्र। पंडवानी गायक या गायिका तंबूरे को हाथ में लेकर स्टेज में घूमते हुए कहानी प्रस्तुत करते हैं। तंबूरे कभी भीम की गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। संगत के कलाकार पीछे अर्ध चन्द्राकर में बैठते हैं। उनमें से एक "रागी" है जो हुंकारु भरते जाता है और साथ में गाता भी है तथा रोचक प्रश्नों के द्वारा कथा को आगे बढ़ाने में मदद करता है।

कापालिक शैली की विश्व विख्यात गायिका हैं तीजन बाई, शांतिबाई चेलकने, उषा बाई बारले। पंडवानी

गायक गायिकाओं की लम्बी श्रृंखला है - जैसे ॠतु वर्मा, खुबलाल यादव, रामाधार सिन्हा, फूल सिंह साहू, लक्ष्मी साहू, प्रभा यादव, सोमे शास्री, पुनिया बाई, जेना बाई।

पंडवानी कौरव पांडवों के युद्ध के साथ साथ महाभारत में श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए संदेश को भी लोगों तक पहुँचाती है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल

पाता है।


नीलम द्विवेदी,

रायपुर, छत्तीसगढ़।

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