छवि
1.
अदृश्य चेतना की छवि तुम,दिव्य-प्रभा से हो भरी।
आवेगी और विवेकी हो,ज्ञानमयी शिवसुंदरी।।
तुझसे है स्पंदित यह जीवन,स्पंदित यह संसार है।
मन का सबसे गहरा तल तू,मन का तू विस्तार है।।
तुझसे है जड़ या जड़ से तू,प्रश्न आज तक है खड़ा।
विज्ञान लड़े आध्यात्म लड़े,प्रश्न जटिल है यह बड़ा।
खेल कौन खेल रहा है जग में,अदृश्य शक्ति है कहाँ ?
कौन व्यवस्था चला रहा है,चलो मुझे लेकर वहाँ।
सत्ता का उद्भव संचालन,किसके द्वारा हो रहा ?
अभिवर्धन परिवर्तन पर भी,प्रश्न खड़ा अतिशय बड़ा।
जीव-जंतु और वनस्पतियाँ, कैसे साँसे ले रही ?
इन घटकों के पीछे कोई,महाशक्ति क्या है नहीं ?
प्राणी के काया में मौजूद,चलते कैसे तंत्र हैं ?
सकल क्रियाएँ चलती कैसे,कोई जादू मंत्र है ?
अणु से लेकर विभु तक पसरे,वैभव का कारण कहो।
नाथ !हमें छवि दिव्य-जगत की,दिखलाओ,न मौन रहो।।
छवि
2.
प्रलय क्षीर सागर में मचता,शयन करे गोविंद ज्यों।
सृष्टि-सृजन करते हैं ब्रह्मा,बैठ-क्रोड़ अरविंद ज्यों।
जड़-चेतन का यही समन्वय,सृष्टि-सृजन का मूल है।
पूरक नहीं एक-दूजे के,यदि बोलूँ तो भूल है।।
आग पत्थरों में होती है,उड़ती जल से वाष्प है।
भूकंप धरा पे आती है,सूरज में भी ताप है।
कभी सुसज्जित हो जाती है,इंद्रधनुष आकाश में।
कीड़े स्वयं पनप जाते हैं,गोबर,कचड़े लाश में।।
कई साधकों का कहना है,परमेश्वर साकार हैं।
कइयों का कहना है ईश्वर,आलोक रश्मि धार हैं।
जड़-चेतन की लीला जग में,महती अपरम्पार है।
समझ सका है इसे न कोई,जादुई चमत्कार है।।
जड़-चेतन के बीच आज तक,खाई एक विशाल है।
पट जाएगी आगे चलकर,कहता उन्नत काल है।
एक ब्रह्म सत्ता हैं दोनों,स्थितियाँ यूँ असमान हैं।
जड़ काया है आत्मा चेतन,जग को यह संज्ञान है।।
डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
*गिरिडीह (झारखण्ड )*
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