तुम्हें याद करके आँखें मूंदती हूँ।
तुम्हें ख्याल करके तुम्हें चूमती हूँ।
तेरा दर्द तेरी निशानी ज़हन में
बहुत दूर क्यों चल दिया सोचती हूँ।
बढ़े टीस जब जब तेरी यादों का तब
ग़ज़ल गीत लिखने कलम ढूंढती हूँ।
वफ़ा की लिए आरज़ू डाली- डाली
हवा संग हर रोज अब झूमती हूँ।
सभी इश्क़ -ए- रक्स से होते हैरान
नहीं तुम हो फिर भी तुम्हें ढूंढती हूँ।
अंजु दास गीतांजलि......✍️पूर्णियाँ बिहार की क़लम से 🙏🌹🙏