रीमा महेंद्र ठाकुर
क्या तुझ पर लिख डालूं मै!
कुछ गीत लिखूं, या गजल लिखूँ!!
अब रास रहा न जीवन मे!
फिर अब कैसा, परिहास लिखूँ!!
न अब भौरें सा पागलपन!
न अब, फूलों मे है पराग!!
तितलिया हुई है, नजर बंद!
फिर मै, कैसा, अनुराग लिखूँ!!
अब संगम पर न कोलाहल!
न, सडको पर आपा धापी!!
चहुँ ओर है फैला, वीराना!
फिर मै कैसा, अरमान लिखूँ!!
खाली सा जीवन का पन्ना!
खाली सी अब, तरूणायी है!!
सब ओर है फैली, खमोशी!
फिर कैसे न, वियोग लिखूँ!!
वो दिन फिर वापस आऐगें!
फिर से फैलेगीं, नई किरण!!
फिर मन मयूर, बन नाचेगा!
फिर से मै, वो ज्जबात लिखूँ!!
रीमा महेंद्र ठाकुर लेखिका "
रानापुर झाबुआ मध्यप्रदेश