कवियत्री पूनम शर्मा स्नेहिल की रचनाएं


वक्त से आगे

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चल वक्त से कुछ आगे ,

इक नया जहांँ बनाएंँगे ।

भुला कर गम सभी हम ,

वहांँ पर मुस्कुराएंगे ।


खिलेगी जो बगिया उसमें ,

आ भवरे भी गुनगुनाएंगे। 

उसकी खुश्बू से हम अपनी,

न‌ई दुनिया महकाएंगे ।


नहीं होगी जहांँ पतझड़ कभी,

 ऐसी वादियांँ लगाएंगे ।

सितारे आके आंँगन में ,

हमारे टीम टिमाएंँगे ।


रखे महफूज हर बला से,

 रब आशियां को हमारे ।

कर इबादत हर घड़ी हम ,

उसका शुक्र मनाएंगे ।


चांँद उतरेगा आंँगन में ,

और हम गीत गाएंँगे।

 रहकर संग एक दूजे के ,

हम जीवन में बिताएंगे ।


चल वक्त से आगे हम ,

सबको दिखलाएंगे।

हर कदम पर एक दूजे का ,

सहारा हम बन जाएंगे ।।



ज़िन्दगी

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जिम्मेदारियों के बोझ ने ,

बड़ा बना दिया ।

अच्छा था वो बचपन ,

जो ममता की छांँव तले बीता करता था।

नहीं है सुकून अब दो पल का भी,

 सब कुछ पाकर भी ।

वह बचपन था यारों,

 जो एक टॉफी से मुस्कुरा दिया करता था। आज सब कुछ खरीदने की,

 हैसियत रखता फिर भी ।

वह मांँ की लोरी वाली ,

सुकून की नींद नहीं आती ।

आज सब कुछ अपना है फिर भी ,

ना जाने क्यों वह भाई बहनों से ।

छीन कर खाने का सुकून नहीं मिलता ,

सब कुछ पाने की होड़ में ,

असल खजाना खो सा गया है ।

वह बचपन की यादें ,

वह बचपन का आगन अब ना रहा ।

पाकर अब सब कुछ भी ,

आज कितने तन्हा से हैं हम ।

वह सुकून वह खुशी ,

का आलम अब ना रहा ।।



गजल

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गम न थे कम राहे जिंदगी में कभी ,

गमों के दरमियांँ फिर भी मुस्कुराते रहे ।

अश्कों में बीती कई रातें फिर भी ,

सुबह की किरण संग खिलखिलाते रहे।


 गुमा न हो अपनों को जख्मों का हमारे, सोचकर यही हर पल गुनगुनाते रहे ।

 ना हो शिकवे शिकायत किसी को कभी,

हर जख्म हम अपना छुपाते रहे ।


हर ख्वाब अपने भुला करके हम तो ,

अरमानों को अपने हम दफनाते रहे ।

सोचा शायद मिलजाए सुकू जिंदगी का ,

हर पल अरमानों की कब्र हम बनाते रहें।


औरों की खुशी तलाशने में हम तो ,

अपनी ही म‌इय्यत सजाते रहे ।

कुछ हासिल ना हुआ खुद को मार कर यूंँ ही, हरपलअपना ही कातिल खुद को बनाते रहे ।


 जिन रिश्तो में खुद को भुला ना था चाहा, बेमानी से रिश्तों को ताउम्र अपनाते रहे। जिनकी खातिर जाने क्या-क्या सहा जिंदगी में ,

हर खुशी पर हमारी वो अपना दिल जलाते रहे।


रिश्तों की क्यारी को महकाते हम कैसे ,

जब हर पौधे को ही वह तोड़ कर जाते रहे।

कब तक संभाले खुद को यूंँ ही ,

जब हर पल वह मतलब परस्ती दिखाते रहे ।।


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