कब हुई मेरी सगाई ,कब हुई मेरी विदाई,
वो प्रश्न दिया कानून गया
कौन बना दूल्हा मेरा
किसने माँग सिंदूर भरा मेरा,
किसके साथ फेरे हुए
वचनबद्ध कौन बना मेरा
गवाह बना कौन कहाँ
किस मंडप रस्म रिवाज हुए,
वो सजा दूल्हा कैसा होगा
दुल्हन बनी जिस मंडप में
वो श्रृंगार कैसा मेरा होगा
कौन रीति रही कौन रिवाज रहा होगा,
धर्म पता ना कुल का पता
ब्याह मेरा जहाँ हुआ होगा
सब रस्म रिवाज पता नहीं
परमीशन खर्चा मुझसे लिया,
मैं औरत हूँ सजा मर्द बनाकर दी सजा मुझे घर में रहना की थी
तारीख नहीं कानून बड़े
दूसरी बीबी का हक कानून बना,
वो ब्याह ले गया ना पता धर्म
लेकिन ऐलान नाम किया मेरा
मैं पूछ रही शांत चित्त से
कहीं नाम अनेक सोच गलत होगा,
बड़ी सजा मिली शोषण मेरा
सब जन ने मजा लिया होगा
परमीशन किस किस को मिली
दावत का न्यौता क्या होगा,
जेठा जी आये शादी में
भंतों संग वचन गिनाते थे
कब कहां कानून किधर
वस सुनो व्हाट्सएप बताते थे,
धज्जिया़ उड़ी कानून रपट
मैं लिख लिख शिकायत हार गयी
रोगी बने मानसिक सब
पर फर्क सभी गिनाते मेरे थे
दहेज एक्ट ,लालच दहेज
कानून धारा सभी लगीं
शोषण रेप बलात्कार का भी
सजा सुनाई मुझको ही गयी,
सभी जन अवकाश रहे
शिकायत मेरी सुनना था
जहाँ फंसे फाँसी फंदा जब
वहीँ रोग मुझको देना था,
कितनों की पत्नी बना डाली
कानून फिर भी अंधा था
हिन्दू परंपरा कहा गया
इज्जत की खातिर सुनना होगा,
क्या सजा रही क्या बफा रही
कोई अपना नहीं दिखा,
दस साल बिताये जेल बिना
सजा जेल से बदतर थी
पति का घमंड बस इतना था
नश्तर सा बना चुभता रहूँ
मरने जान तुझे नहीं दूँगा,
सब गवाह बने सरपंच वहीँ,
रोजगार हाथों से छींन लिया
खाली हाथ तुझे जाना होगा
गाली गिलौज मुझे दिलायी
वैश्यापन का शेष ताज रहा फाँसी से बचना उनका ही कानून रहा।।
विमल सागर
बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश