निवेदिता रॉय
बड़ी चालाक है ये अहंकारी कुर्सी
जादू कर जाती बिना राजा की मर्ज़ी
जो एक बार बैठ गए
वो तो इस के मुरीद हो गए
अपने पराये का मोह छूट जाता
सत्ता का लालच बस रह जाता
ढोल ताशे बजते रहें
लाशें अनेक चाहे गिरती रहें
कुर्सी का मोह सर्वोपरि
प्रजा रहती डरी डरी
राम जी की गंगा भी हो गई मैली
पर जे कुर्सी चाहे भवन हवेली
ऐ कुर्सी, बड़ी ज़ुल्मी ये महामारी
ओ लकड़ काया !क्यों है इतनी लाचारी ?
कुर्सी रानी तुम ही कुछ तरकीब लड़ाओ
कुछ यूँ अपना धर्म निभाओ
जिस बढ़ई ने तुम को रचा था
उस के घर में रुंदन मचा था
उन गरीब हाथों की रख लो लाज
तुम ही कर लो तनिक कुछ काज
कहीं तुम जो चरमराई
कौन करेगा जनता को भरपाई?
निवेदिता रॉय
(बहरीन)