किरण झा
चाहत नहीं मुझे पुण्य सलिला गंगा कि
मेरे लिए तो पावन तुम हो मां
नहीं जाना मुझे मथुरा काशी तीर्थ प्रयाग
मेरे लिए तो संपूर्ण वृन्दावन तुम हो मां
सृजन हार हो तुम, पालनहार हो तुम
बनकर आई इस धरा पर पर ईश्वर का इक अवतार हो मां
बदल देती हो अपने शोणित के उज्जवल धार में
बच्चों की हर खुशियों की नीलगगन तुम हो मां
वंदन हो, अर्चन हो
पूजन और अभिनंदन हो मां
भगवान भी तेरे आंचल को तरसता है
बार बार मनुज तन लेने इस धरा पर आता है
ऐसा अटूट बंधन तो तुम हो मां
अनवरत सी चलती रहती हो,
पलभर भी ना थकती हो
आशा हो अभिलाषा हो
हर छोटी-बड़ी खुशियों की दर्पण तुम हो मां
हो आसमान सी विस्तृत,चंदा सी शीतल हो मां
उष्मित हो रवि की तरह,ओस की बुंदों सी कोमल हो मां
शब्द नहीं हैं मेरे पास
जो तेरी परिभाषा गढ़ पाऊं
थोड़ी सी भाषा में इतना ही कहती हूं
मेरे लिए जीवन तुम हो मां