श्री कमलेश झा
दम घुटे छै आब शहर में
चलो लौटी के गाँव में भाए।
बाबा बाला दुवार सुना छै
ओकरे में जमते बैठकी भाए ।।
हाँ होतै कुछ दिक्कत सिक्कत
करी लेबै ओकरा बर्दाश्त।
लेकिन ई उबाऊ जीवन से
मिलते ते हमरा सब के निजात।।
नैय होते ई बड़का सेलरी
नैय होते ई चमक दमक।
लेकिन आपनो बेख बगीचा छै
किने नैय पड़ते शुद्ध पवन।।
की फायदा ई कनक पिजड़ा में
जेकरो दरवाजे बाहर से छै बंद।
रोटी वाला भट्ठी बंद छै
पानी वाला नलका छै बंद।।
किनी किनी के स्वाश खिंचे छि
तैयो छै पट्टी मुह पर बंद।
आश टूटे छै सुनी सुनी के
हाल अस्पताल आरु श्मसान संग।।
यै से ते अच्छा होतय
भाए बंधु सब रहबो संग।
आधा या भरिपेटा खाना
खाइबो सभहे मिली के संग।।
आए कॅरोना, काल कोनो आफत
जो आईते ते लड़बे संग ।
अपनो पढ़लका ज्ञान लगाएके
गाँव विकास में होइबे संग।।
चमक दमक ते खुबे देखलौं
आबे चाही सादा जीवन।
सांस बिना घुटी घुटी के
बेकार नैय करबै अपनो जीवन।।
श्री कमलेश झा
राजधानी दिल्ली