डॉ सुलक्षणा
सपनों को हकीकत में बदलना चाहती हूँ,
कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती हूँ।
मैं, तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाना चाहती हूँ,
संग में संघर्ष की भट्ठी में जलना चाहती हूँ।
हर हाल में साथ निभाने की कसमें खाई थी,
उन कसमों से हरगिज नहीं टलना चाहती हूँ।
मुझे कमजोरी मत समझो, ताकत हूँ तुम्हारी,
बुरे वक्त को कदमों तले कुचलना चाहती हूँ।
सुनो! अपनी मर्यादाओं को जानती हूँ मैं,
सिर गर्व से ऊँचा करके टहलना चाहती हूँ।
सुलक्षणा को दो मौका तुम कुछ करने का,
विपत्तियों को हौंसलों से मसलना चाहती हूँ।
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