जगदीश चंद्र शर्मा
संकल्प करें द्विज पुत्र सभी,इस धरा धाम पर न्याय करें !
उस दिव्य ऋषि का क्रोध जगे, दुनिया से पापी दूर करें !
ब्रह्मपुत्र हम दिव्य संतति, सब मिलकर आह्वान करें !
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से, यह धरती मां चित्कार करें ।
कोप दृष्टि के प्रचंड प्रहार से, फरसा फिर चमकाना है !
पीड़ित मानव की रक्षा में,फिर से धरती पर आना है !
मातृ हंता का दाग मिटा लो, अवसर यह अनोखा है !
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से, दानव अदृश्य अनोखा है ।
शिवभक्त भयंकर भगवन हो, जमदग्नि परमवीर कहलाए ।
कश्यप से विधिवत मंत्र पढ़ें,गिरी श्रंग के वासी कहलाए !
शंकर से पाकर त्रैलोक्य कवच, अक्षुण्ण अविनाशी कहलाए ।
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से ,साक्षात दंडवत कर पाए ।
पित्राज्ञा पाकर कुपित हुए,नहीं कछुक भी धरी धीर !
सहस्त्रबाहु संहार किया,क्षत्रिय विनाशक महावीर !
21 बार तपोबल से,बन गए धरा के दानवीर।
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से, पुत्रों को बना दो कर्मवीर ।
परशु का फरसा फिर चमके, असहाय द्विज हुंकार भरे !
लुप्त ज्ञान फिर पुनः जगे, ब्राह्मण भी दिव्य कर्म करें !
वसुधा पर द्विज का मान बढे, ऋषि का सबको आशीष मिले !
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से,इस जग में द्विज को सम्मान मिले ।
दैत्यों के दंत प्रहारों से, विश्व धरा को मुक्त करो !
भारत मां के दग्ध आंचल को, दुश्मन के लहू से नम कर दो !
शत्रु के कुटिल कुचक्रों को,फरसे के वार से विफल करो !
हे परशुराम ! प्रकटो फिर से,भव बंधन से हमें मुक्त करो ।
रचनाकार-जगदीश चंद्र शर्मा
(व्याख्याता) रा.उ.मा.वि.महुआ
ब्लॉक-मांडलगढ़,जिला भीलवाड़ा
निवासी-पारोली,तहसील-कोटडी
जिला-भीलवाड़ा,(राज)