आईना

 

बलवानसिंह कुंडू 'सावी'

एक आईने के अनेक मायने

भए उदास तो जाते पास

सजल नेत्रों को बतलाता

भाव दुःख के तार - तार करता

ममतामयी मां -सा सहलाता

सब दुख मानो स्वयं सह जाता

सजने धजने जो पास जाएं

प्रियतम सा अहसास दिलाए

गर प्रीतम संग समक्ष जाएं

मन वसंत सा खिल -खिल जाएं

कोमल गालों की आभा

बिखरी जुल्फों का सावन - घन

देख सौगुना हरा -हरा मन

मुस्कराते अधर समक्ष दर्पण

करने को तत्पर समर्पण

क्यों न जग ऐसा दर्पण बने

न रहने दे किसी को अनमने


बलवान सिंह कुंडू 'सावी'

प्राध्यापक रा व मा वि जाखौली

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