विद्या शंकर विद्यार्थी
दिल्ली शहरिया के बंद बा करखनवा,
मोर सजनिया हो,
केहू नइखे इहाँ तिकनहार ....।
जेकरे के मालिक बुझलीं
ऊँच बा मकनवा,
मोर सजनिया हो,
आपदा में भइल ना हमार ... ।
धरती ठंढाई कइसे लहकल बा गगनवा
मोर सजनिया हो
धंधकत बा जइसे अंगार....।
रोकत रहतिया बा पुलिसिया ससनवा,
मोर सजनिया हो
निठुर नाहीं देखलीं संसार...।
क्रोनवा से बेशी जनवा लेत बा जहनवा
मोर सजनिया हो
कइसै रोकीं भूख के अवार....।