नाक अगर ऊँची हुई, छूती हो आकाश।
उस से दूरी पर रहो, वह अपयश का पाश।।
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आते-जाते घटती रहे, आयु कपूर समान।
श्वास भरी घट कुम्भ है, ठहरी दिखता प्राण।।
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आते-जाते घट रही, आयु कपूर समान।
श्वास भरी घट कुम्भ है, ठहरी दिखता प्राण।।
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सूत कते रेशा कसे, पूनी घूमे गोल।
कसो श्वास के तार पर, चरखी तन की तोल।।
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सरग-नरक दुइ भाँत हैं, क्रोध प्रेम कै रूप।
कर बिचार अपनाय जे, रंक बनावै भूप।।
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पाँव पसारे खाट पै, पहुँड़ा जाँगर चोर।
खेत चरै सूखा परै, धुत्त नचावै मोर।।
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मनई बावर धन भए, तन की बाढ़ै भूख।
संतोखी जीवै सहज, रोटी भावै रूख।।
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कागा कूजन कबु करै, कोयलि कबु टर्राय।
दादुर टेरै कबु मधुर, स्वर सुभाव बर्राय।।
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गागरि जल सीतल धरै, बाहरु कितन्यौ ताप।
अंतस तेरा ईस है, जग कल्हरै तू जाप।।
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तन घुनहा भुरकुस भया, घुन जस समझु मकार।
अजपा जप जस श्वास कै, आवै जाय रकार।।
- विनय विक्रम सिंह