भजन
डॉ. अर्चना दुबे 'रीतश्याम तन, श्याम मन, श्याम ही हमारे धन ।
आठों पहर ध्याऊँ तुम्हें बस गये धनश्याम मन ।
देव तुम्हीं, गुरु तुम्हीं हो सखा हमारे तुम्हीं ।
जाऊं कहां कोई नहीं हो आधार हे कृष्ण तुम्हीं ।
दासी बन पुजारिन बन करूँगी सेवा भाव से ।
कृष्ण, बनवारी कह बुलाऊँगी लगाव से ।
भोग भी लगाऊंगी प्रेम से खिलाऊंगी ।
बंशीवाले कहकर सदा तुम्हें मनाऊंगी ।
माखन खिलाऊंगी, दूध भी पिलाऊंगी ।
बालपन को याद कर मन अपना बहलाऊंगी ।
श्याम गति, श्याम मति, श्याम मेरे प्राणपति ।
श्याम सुखधाम नाम लेकर बन जाये गति ।
हे नारायण रुपधारी विष्णु, मोहन हो मुरारी ।
मुझे भव तार दो कब आयेगी हमारी बारी ।
श्याम हिय में श्याम जिय में श्याम बिनु नहीं कोई प्रिय ।
श्याम श्याम श्याम कह 'रीत' रहती सक्रिय ।
दर्शन दो अब घनश्याम कह बुलाती हूँ ।
राधे-कृष्ण,राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण गाती हूँ ।
*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍️
मुम्बई