मैं इस जीवन का
स्वच्छन्द विहग-
अब हमको
उड़ जाने दो
अरमान मेरे
ना कैद करो
अब जी भरके
उड़ लेने दो
अब अम्बर
पंख फैलाने दो
बहुत हो चुका
घुटकर जीना
अब हमको
उड़ जाने दो
अम्बर विहार
कर लेने दो
इन पंखों में
अब नयी
चेतना भरने दो
जीवन की दिशा
बदलने दो
अब हमको
उड़ जाने दो
अवरोध करो
ना मेरा पथ
लक्ष मेरा न
बाध्य करो
मैं एक रहा
स्वच्छन्द विहग-
अब हमको उड़ जाने दो
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक ------( हरदोई)
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