ग़ज़ल

  













डॕा शाहिदा

रस्मे दुनिया निभाए जा रहे हैं,

रिश्ते यूँ ही बनाए जा रहे हैं |



मोहब्बत नहीं है किसी को,

फिर भी मुस्कुराए जा रहे हैं |


सच पूछिये तो ये दिल है छलनी ,

राज़े असल छिपाए जा रहे हैं |


बीमार का हाल अच्छा है,

यही सबको बताए जा रहे हैं |


खिले थे गुल जो आरज़ुओं के,

वो सब मुरझाए जा रहे हैं |


ये हालात कैसे ठीक होंगे फिर,

यही सोचकर घबराए जा रहे हैं |


अजब सा माहौल है "शाहिद",

सब्ज़ बाग़ दिखाए जा रहे हैं |



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