मैं कुछ ऐसे

डॉ मंजु सैनी

अपनी जिंदगी के पल पल

का हिसाब कर देती हूं 

दुनिया से मिली पीड़ा को 

मैं अपनी लेखनी से लिख लेती हूं।


मैं कुछ ऐसे

माँ के अंतर्मन की पीड़ा को

माँ चेहरे की पीड़ा को

उसकी सारी मनःस्तिथि को

मैं अपनी लेखनी से लिख लेती हूँ


मैं कुछ ऐसे

अपनी तरक्की को सोच कर

अपने पाँव जमीन पर ही रखती हूँ

मैं पतंग सी ऊंची उड़ान तो उड़ती हूं

लेखनी से खुद को जमी से जोड़ती हू


मैं कुछ ऐसे

अपने जीवन की गाथा लिख देती हूँ

हर घटना पर कलम को धार देती हूँ

लोगो की तिरछी नजर भी सह लेती हूँ

पर लेखनी से समझौता नही करती हूँ


मैं कुछ ऐसे


कोशिश पूरी करती हूँ मंजिलें मिले मुझे भी

पर रास्ता सीधा सा ही पकड़ती हूँ

कोई छल करे सहती नहीं हूँ

न ही अपनी लेखनी से छल करती हूँ

डॉ मंजु सैनी

गाजियाबाद

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