मेरा हृदय उद्गार

एक हवा का झोंका आया प्यार का

गिरिराज पांडे 

 एक हवा का झोंका आया प्यार का

 उड़ गया सब भ्रम था जो अभिमान का

 हो गई बारिश हृदय में प्रेम की 


भीगा बदन और मन प्रफुल्लित हो गया

 लगने लगा फिर मन भी उसमें डूब कर

 मन मेरा उपवन के जैसा हो गया

 हर तरफ छाई रही खुशियां ही खुशियां

 सुख भरा संसार सब लगने लगा 

घुल गई चिंता मेरे मन की सभी

 जब प्रकृति पाया इस जगत में प्रेम की

 हर कली अब फूल यहां पर बन गई 

देख कर के दिल की रौनक बढ़ गई 

वादियां फूलों की अब दिल बन गई

 प्रकृति चेहरे को प्रफुल्लित कर गई 

जो धधकता था हिर्दय इस आग में

 चांदनी सी रात शीतल कर गई

 तन भी भीगा मन भी भीगा प्रेम में

 तन मन को वो सबके यहां महका गई

 शक्ति होती प्रेम में कितनी यहां 

जवाब सबका वह यहां पर बन गई  


गिरिराज पांडे 

वीरमऊ 

प्रतापगढ़

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