अंजु दास गीतांजलि की ग़ज़ल

       


शारदे को कर नमन, लिखती हूँ सच्चाई कलम से।

चाहती हूँ फिर से लाना ,जग में अच्छाई कलम से।


हिन्दू ,मुस्लिम, सिख , ईसाई आज़ बन बैठे कसाई 

बोलिये कैसे लिखूं इनको भाई - भाई कलम से।


कोख़ में भी जीना मुश्किल हो गया अब बेटियों का

मैं बयां कैसे करूं दुनिया की सच्चाई क़लम से ।


वो न जाने क्यों हमें कहते रहे जाहिल हमेशा 

झूठ पर सच की बजा सकती हूं शहनाई क़लम से ।


वक़्त कैसा आ गया रोजी - रोटी पे आई शामत 

वक़्त कैसे कर पायेगा इसकी भरपाई कलम से।


इक नदी सी ज़िन्दगी होती सदा नारी की सुन लो

मत मलिन होने देना तुम उसकी परछाई कलम से।


अंजु को अंजाम की परवाह हरगिज़ भी नहीं है

चाह लूँ तो पल में ला सकती हूँ तअबाही कलम से।


अंजु दास गीतांजलि.....✍️ पूर्णियाँ ( बिहार ) की क़लम से 🙏🌹🙏

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