मुश्किलें और मुसाफ़िर

ख़ुशबू पाण्डेय

सफ़र में मुश्किलें तमाम आएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी

जो मुसाफ़िर निकल गये इक बार घर से

कहां ठहरा करते हैं मंज़िल से पहले 


अरुण उषाएं उमंग न‌ई लाएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी


जो रस्ता लंबा हुआ तो क्या हुआ

कहां छोटे रस्ते में बड़ी मंज़िल समाएगी


राहों की ठोकरें ठोस तुम्हें बनाएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी


इरादे पक्के रक्खा करो भाई 

कच्ची इमारत आसानी से ढह जाएगी


बिना चले पथिक पथ पर कैसे मंज़िलें आएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी


जो जंग से पहले ही डर गये तुम

देखो बन्धु जीते जी मर गये तुम 


तेरे क़दमों की निशानियां गजब रंग लाएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी


सफ़र में मुश्किलें तमाम आएंगी

मुश्किलें इक-इक करके ठहर जाएंगी ।।


- *ख़ुशबू पाण्डेय, लखनऊ*

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