तबादलों का मौसम



राकेश चन्द्रा

लो फिर आ गया है

तबादलों का मौसम!

हाकिमों, कारिन्दों और कारकुनों के लिय

चातुर्मास का मौसम !


तबादलों के मौसम में

सब-कुछ गरमागरम रहता है;

कूलर की ठंडक से

कैन्टीन की चाय तक;


बहसों और चर्चाओं से

करीने से बंधी मुठ्ठियों तक

बस ठंडा रहता है तो एक

बस्ता, जिसमें

डालते रहते हैं निरपेक्ष भाव से

वर्मा जी के पेंशन और

शर्मा जी के फंड के कागजात;


दूर-दराज के हरखू के खेत की

पैमाइश की अर्जी;

बुढ़िया रामरती की वृद्धावस्था पेंशन

के प्रार्थनापत्र; समय से राशन न बांटने की

कोटेदार की शिकायत; यूरिया खाद से

लेकर मिट्टी के तेल में मिलावट रोकने की गुहार

और न जाने कैसे-कैसे

किसिम-किसिम के सपने

कुछ रंगीन,कुछ श्वेत-श्याम;


चन्द जरूरी फाइलें

और पीले चेहरों वाले

रोजमर्रा के कागजात.


 तबादलों के मौसम में

टोपियां उछलती है;

और टोपियां,

बदलती है;पर कुछ भी हो

इस मौसम में खासकर

टोपियों की बात चलती है

टोपी -विहीन लोगों की आशाएं

तो सिर्फ हाथ मलती हैं.               


तबादलों के मौसम में

कई जेबें

खाली होती रहती है; तो

कुछ जेबें

भरती ही जाती है और

इस मौसम में

रंग-बिरंगी टोपियां

बन जाती हैं मदारी, जो

चुनाव करती है उन जम्हूरों का

जो कर सके

उनकी हां में हां;मिला सके

उनके सुर में सुर

ताल में ताल; और बाकी

बस ‘ना’ ही ‘ना’.

तबादलों के मौसम में नपती हैं

रिश्तों की गहराइयां;


चर्चा में रहती है नई-पुरानी पहचानो की

आकलन रपट;

विस्मृति की तंद्रा को झाड़-पोंछ

खोजे जाते हैं नित नये सन्दर्भ;

और लगते हैं रोजाना

तबादलों के मौसम के

नये-नये अर्थ.


राकेश चन्द्रा

610/60, केशव नगर कालोनी, 

सीतापुर रोड, लखनऊ 

उत्तर-प्रदेश-226020,              

दूरभाष नम्बर :9457353346

rakeshchandra.81@gmail.com

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