शहीदों की स्मृति

रंजन साव

मैं सरहद होकर आया हूं,

शहीदों की स्मृति साथ लाया हूं ।


मुझसे पूछो वे कैसे थे,

उनके जीवन क्यों ऐसे थे ।

हम भी क्यों उनके जैसा ना हो पाए,

हम भी क्यों फौजी ना बन पाए ।


वे मृत्यु पर विजय पाकर मृत्युंजय थे,

शत्रु से लड़ कर वे शत्रु-विजयी थे।


पराक्रम और वीरता की

उन्होंने लिखी एक नई परिभाषा थी।


उनके परिवार वालों को,

उनके घर वापस लौट आने की आशा थी ।


लेकिन जब वे लौटे थे,

तो पूरा गांव इकट्ठा था ।


उनके तन पर सजा,

कफ़न तिरंगा था ।


वे घोर निद्रा में लेटे थे,

वे मां भारती के बेटे थे ।


अश्रुजल से सभी ने 

उनके चरणों धोया था ।


ऐसे ही हर शहीद के परिवार ने

अपने बेटे को खोया था ।


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