मैं सरहद होकर आया हूं,
शहीदों की स्मृति साथ लाया हूं ।
मुझसे पूछो वे कैसे थे,
उनके जीवन क्यों ऐसे थे ।
हम भी क्यों उनके जैसा ना हो पाए,
हम भी क्यों फौजी ना बन पाए ।
वे मृत्यु पर विजय पाकर मृत्युंजय थे,
शत्रु से लड़ कर वे शत्रु-विजयी थे।
पराक्रम और वीरता की
उन्होंने लिखी एक नई परिभाषा थी।
उनके परिवार वालों को,
उनके घर वापस लौट आने की आशा थी ।
लेकिन जब वे लौटे थे,
तो पूरा गांव इकट्ठा था ।
उनके तन पर सजा,
कफ़न तिरंगा था ।
वे घोर निद्रा में लेटे थे,
वे मां भारती के बेटे थे ।
अश्रुजल से सभी ने
उनके चरणों धोया था ।
ऐसे ही हर शहीद के परिवार ने
अपने बेटे को खोया था ।
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