मुकेश गौतम
सपनों की भावी इमारत है तू,
अपनेपन की इबारत है तू।
तूझ से ही सुखद है ये सारा जहाँ,
उस परमात्मा की इबादत है तू।।
मुझ में मेरा सा एहसास है तू,
जन्मों का वृत और उपवास है तू।
मेरी हर दिन नई तलाश है तू,
सच कहूँ तो मेरी ही साँस हैं तू।।
जीवन की आपाधापी में सकून है तू,
थकावट में भी एक जुनून है तू।
मेरी हर साँझ और हर सवेरा है तू,
हर दिन मेरा जीवंत बसेरा है तू।।
तू सलामत रहे रब से अरदास है,
तेरे हर पल में उस का ही वास है।
तूझ से ही मुझ में अनोखा प्रकाश हैं,
तेरी सलामती ही मेरे होने का आभास हैं।
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रचनाकार
-मुकेश गौतम
ग्राम डपटा बूंदी(राज)
16:05:2021