मनु प्रताप सिंह
वेदांग की तरंगिणी संगम से,
बहता विद्यासागर वेदों का।
बुद्ध क्रांति के अभ्युदय से,,
मर्दन हुआ वर्ण भेदों का।।
बन्धन भी सिखाती जीवन को,
मनु-विदुर की स्मृति सहिंता।
महाग्रन्थों के विपुल उपहारों से,,
सजे धर्मकाव्यों के रचयिता।।
आत्मबोध से आत्मचिन्तक बनाती,
अलौकिक उपनिषद का रहस्यवाद।
अक्रिय विश्व के प्रांगण में करती,,
गीता कर्म का शंखनाद ।।
बनी कर्तव्यों की रामायण और,
अधिकारों की महाभारत वरीयता।
आख्यानों के अतुल्य उपहारों से,
सजे महाकाव्यों के रचयिता।।
क्रांतिवीरों में मिश्रण की सतसई,
राष्ट्रप्रेम का प्राण फूँकते थे।
जिनकी चेतावनी से दरबारों में,,
स्वाभिमान के कदम रुकते थे।।
जीवन मे जिनके मार्गदर्शन से,
प्रवाहित होती थी सरिता।
महाग्रन्थों के अनुपम उपहारों से,,
सजे राष्ट्रकाव्यों के रचयिता।।
● मनु प्रताप सिंह चींचडौली,खेतड़ी