आज के युग में जिंदा है इंसानिय

 

डॉ. सरिता यादव

कलयुग का आगमन हो या सत युग का लेकिन सच्चाई और अच्छाई प्रत्येक युग में होती है ।भले ही समय बदलाव करता रहे लेकिन यह पृथ्वी गोल है। प्रत्येक मनुष्य कहीं न कहीं एक दूसरे से मिल जाता है और वह चाहे भगवान के रूप में आए अपनी इंसानियत दिखाने या इंसान के रूप में वह प्रत्येक जगह विद्यमान है ।कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है एक सुंदर सा गांव उसमें रहने वाले मन भी बिलकुल निर्मल एवं स्वच्छ लेकिन आकाश को अपने ऊपर बहुत गर्व महसूस होता है कि उसका जन्म ऐसे गांव में हुआ है लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था आकाश की नौकरी लग गई और वह दूसरे शहर में जाकर रहने लगा आकाश की नौकरी लगने के बाद शादी और दो बच्चे हो गए एक लड़का एक लड़की 40 वर्ष नौकरी करने के पश्चात आकाश मन दूसरी औरतों में लग जाता है ।और वह अपने पत्नी और बच्चों को धीरे-धीरे भूल जाता है आकाश की पत्नी बहुत विनती करती हैं कि हमें छोड़कर मत जाओ लेकिन आकाश किसी की भी नहीं सुनता और चला जाता है ।अपनी पत्नी और बच्चों को रोता हुआ छोड़ कर। कुछ साल ऐसे ही बीत जाते हैं फिर अचानक पूरे शहर गांव सब जगह ऐसी बीमारी आ जाती है जिसकी चपेट में सारा शहर गांव सब आ जाते हैं ।पूरे संसार में उस भयंकर बीमारी से त्राहि-त्राहि मच जाती है ।कोई कहीं भागता है कोई कही लेकिन विधि का विधान कुछ अलग होता है आकाश को भी वह बीमारी लग जाती है और वह पागलों की तरह हो जाता है वह डॉक्टर के पास जाता है तो डाँ बोलता है कि मेरे पास जगह नहीं आपको एडमिट करने के लिए आकाश को कोई रास्ता नजर नहीं आता डॉक्टर उसकी बीमारी की दवाई लिखता है और बोला कि आप अगर यह दवाई कहीं से मिल जाती है तो आप की 20% बचने की उम्मीद है आकाश दवाई की तलाश में इधर-उधर भटकता है 2 दिन निकल जाने जाते हैं उसकी हालत बहुत ही खराब होती है जा रही है ।फिर एक औषधालय में वह दवाई होती है पर जैसे ही आकाश वहां पर पहुंचता है तो उस दवाई वालेंं पास सैकड़ों लोग खड़े हैं और फोन आ रहे हैं कि हमें यह दवाई दुगने दाम पर दे दो और चाहे कितना पैसा ले लो यह सुनकर आकाश निराश हो जाता है यहां पर भी नहीं मिल सकती दवाई तभी उसे मेडिकल वाले ने कहा कि भैया आपको क्या परेशानी है तब आकाश ने बताया कहां कि मेरे पास है दवाई और हजारों लोग मुझे इसे दोगने तिगने दाम दे रहे हैं। मुझे मेरे खुदा का वास्ता मैं अपने काम से दगा नहीं करूंगा ।जो इसमें पैसा लिखा हुआ है उसी के हिसाब से दवाई दूंगा और मुझे बेईमानी का पैसा नहीं चाहिए। और इसी कि जिस को ज्यादा जरूरत है। उसी को ही मिलेगी आप ले लीजिए दवाई ।मुझे लगता आपको इस दवाई की ज्यादा जरूरत है आकाश की आंखों में पानी आ गया ।दवाई लेकर तुरंत अपने गांव की तरफ चल पड़ा वहां पर पत्नी ने उसकी खूब देखभाल की 20% को 100% में बदल दिया और आकाश बिल्कुल ठीक हो गया तब आकाश ने दिल ही दिल महसूस किया कि और कहा कि आज भी लोगों के दिलों में इंसानियत जिंदा है तभी तो उसे मेडिकल वाले ने उसको दवाई दे दी और सब कुछ छोड़ दिया और पत्नी के साथ इतना बुरा व्यवहार करने पर भी उस पत्नी ने इंसानियत दिखाई।

डॉ. सरिता यादव 

( हिंदी व्याख्याता )

राजकीय महाविद्यालय

 जटौली हेली मंडी 

गुरुग्रामहरियाणा 

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