रे कोरोना एक बार बता दे

 

माला अज्ञात...

रे कोरोना एक बार बता दे

क्या तूने मन में ठानी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


कैसे देख लेता है तू

हृदय विदारक करुण दृश्य

भेद सारे कवचों को

की मनमानी होकर अदृश्य

सुन चीखें अनाथ बच्चों की

शायद हो जाये पानी पानी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


कहीं रोती माँ बच्चे के लिये

कहीं बच्चा बिलखे माँ के शव पर

कहीं तके राह तरुणी कोई

सूनी माँग लिये सूने पथ पर

बुझा दिये घर के दीपक

की कैसी तूने मनमानी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


जीवन दिया था जिस माँ ने

उसको दो साँसें खरीद न सका

बेबस सा बेटा भरे आहें

जब पल पल माँ को मरते देखा

इस तरह न खेल तू रिश्तों से

माना ये दुनिया फानी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


दूर किया अपनों को अपनों से

तड़पे मन पास जा न सके

ऐसा डर फैलाया तूने

हाथ से आँसू पोंछ न सके

गले लगाना चाहा पर डर गये

क्या मौत हमें न आनी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


कहीं बापू देते ढाँढस बेटे को

कहीं बेटा थामे बापू का हाथ

जानकर साथ छूटने वाला है

रोये बहुत, बदल सके न हालात

अब बस करो तांडव मौत का

मान लिया हम निरीह से प्राणी है

बेबस से सारे मनुज किये

ईश्वर की भी न मानी है


                माला अज्ञात...

              ग्वालियर म.प्र.

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