देवकी दर्पण
शीश धर चरणों में विनती करू मैं मैया,
हिय अन्धकार में प्रकाश ही प्रकाश कर।
सद्बुद्धि दायनी विकार सब हर मेरा,
तार कस वीणा के माँ कंठ में निवास कर।
तेरे बिना लेखनी अधूरे सब कागज है,
लेखनी में ताकत व वाणी को मधुर कर।
ऐसा हार शब्दों का पिरो मैं सकूं जो मैंया,
भाव रूपी फूलों में माँ मेरी तू मदद कर।।१।।
वाणी से, मनाऊं वाणी, वाणी वीणापाणि,
पाणी गंगा का कहा से, लाऊं चक्षु से चढ़ाऊंगा।
गर ना पधारी वाणी, वाणी वीणा ना ही ताणी,
तेरे शिवा विमला मैं, किसको मनाऊंगा।
तू ही वात्सल्य तू ही ममता की मूरती है,
निश दिन मैया मैं उतारूं तेरी आरती।
करदे आलोक तम नाश कर हृदय में,
धारती सो करती है मैया तू ही भारती।।२।।
🌷देवकी दर्पण🌷✍️
काव्य कुंज रोटेदा जि. बून्दी राजस्थान