ऐसे गीत मुझे सुनाती है मां



वीरेंद्र सागर 

 बांसुरी की मधुर तान सुनाई देती हो जैसे, 

ऐसे गीत मुझे सुनाती है मां ||

जब उसकी उंगली पकड़ कर चलता हूं मैं,

तो मन ही मन मुस्कुराती है मां ||

जब करता हूं अठखेलियां उसके साथ,

तब साथ-साथ मेरे खिलखिलाती है मां ||

जब नींद नहीं आ रही मुझे,

तब लोरी सुना मुझे सुलाती है मां||

भोर  बहे मुझे जगाने के लिए,  

माथा चूम मुझे उठाती है मां ||

करती है दुआ हर रोज मेरे लिए खुदा से, 

ना जाने कितने सपने मेरे लिए सजाती है मां ||

पीड़ा सहती है खुद बहुत मगर ,

अकेले में आंसू बहाती है मां ||

मेरा हंसता हुआ चेहरा देखने के लिए ,

अपने गम मुझसे छुपाती है मां ||

जब रूठ जाता हूं मैं कभी उससे ,

तो अपने हाथों से मुझे खाना खिलाती है मां ||

खुद रह जाती हैभूखी मगर ,

मुझे कभी भूखा नहीं सुलाती है मां ||

प्यार मां का शब्दों में बयां नहीं कर पाता हूं मैं ,

इतना  लाड मुझे लड़ाती है मां ||

नजरों से अगर हम  दूर रहते हैं उसकी ,

तो आता देख हमें सीने से लगाती है मां ||

खुश नसीब है वो  जिन्हें मां का प्यार मिलता है,

जिन्हें नसीब नहीं उन्हें बहुत याद आती है मां ||


- वीरेंद्र सागर 

- शिवपुरी मध्य प्रदेश

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