ग़ज़ल

सुभाषिनी जोशी' सुलभ'

यह जिन्दगी मुकम्मल तहजीबों का आधार बने।

इक दूजे के हो कर जी ले यही सदाचार बने। 

लेकर हाथों में हाथ , बंदे जी ले बचा जीवन ।

इसी तसल्ली से दिल की खूबियों का संसार बने।


क्या रक्खा है फ़रेब में, बीज मुहब्बत के बो ले , 

इक रोज़ तो जाना है चाहत ही नवाचार बने।


परहेजगारी को अपना ले नेकी की बातकर, 

चल अमन की कश्ती ले नहीं कभी कदाचार बने। 


है ज़रूरत इन्सां को इन्सां की' इस तन्हाई में,

कर हौसलाअफजाई सबके लिए सुविचार बने।


सुभाषिनी जोशी' सुलभ'

इन्दौर मध्यप्रदेश

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