दीपक शुक्ल 'चिराग'
समय तो है कठिन मित्रों धैर्य तो फिर भी रहना है।
वक्त के ज़ख्मों को यारों हमें अब तो सहना है।।
विधाता आज तूने हवा में क्या गरल बोया है।
खुद मैंने ,कई अपनों ने फिर अपनों को खोया है।
विगत एक माह से हर संदेश पर अब डर लगा लगने।।
हर एक जन हो सलामत और स्वस्थ हों सभी अपने।
प्रभु कुछ अब तो ऐसा करदो
कि तेरी जय-जयकार हो।
खत्म अब वेदना और ये हाहाकार हो।।
अब न रह जाए कोई विष इन हवाओं में।
कोई न वेदना का स्वर गूंजे इन फिजाओं में।।
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दीपक शुक्ल 'चिराग'
संस्थापक
काव्यांजलि "एक अनूठा आरंभ"
विश्व मंच
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