दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं,
देख दशा प्रवासी मजदूरों की।
कैसा भूखा पेट बिलख रहा है,
महिला पुरुषों व सुकुमारों की।
भूखे प्यासे यह फिरते हैं दर दर,
कहीं किसी से कोई आस मिले।
ये परदेशी सब छोड़ चल पड़े हैं,
छाले मजबूरों के पैरों में हैं मिले।
पैदल चलते चलते रास्ता काटें,
धूप छाँव की कोई फिकर नहीं।
एक यही अभिलाषा है मन में,
किसी तरह से अपने घर पहुँचें।
छूट गयी है सब की रोजी रोटी,
परदेश में बनी गृहस्थी नष्ट हुई।
जीवन से कड़ा संघर्ष कर रहे हैं,
चल पड़े सब निज गाँव के ओर।
ये उम्मीद हृदय में रख कर सपनें,
घर मेरा है रोटी तो देंगे ही अपने।
महिलाओं बच्चों को रास्ता भारी,
कोई बैल सा स्वयं खींचता गाड़ी।
कई गर्भवती तो रस्ते में ही माँ बनी,
कितनी तकलीफों में शिशु हैं जनी।
कई लोग की रस्ता चलते मौत हुई,
कइयों के एक्सीडेंट में है जान गई।
कितना दुःखद भयावह है ये मंजर,
आँखें देखी हैं जो है बड़ा भयंकर।
सरकार बहुत कुछ इनकी खातिर,
वैसे तो करने में शुरू से लगी हुई।
कुछ निजी संस्थायें भी लगी हुई हैं,
इनके भूख को थोड़ी राहत देने में।
ऊँट के मुँह में जीरा जैसे है ये सब,
कितना कौन करेगा यह कब तक।
चेहरे निस्तेज हुये पड़ी हुयी है झाँई,
प्रवासी मजदूरों के पैरों फटी बेवाई।
शासन व प्रशासन सब ही हर दिन,
लगा है निज घर इनके पहुँचाने में।
फिर भी कष्ट व इनकी हर परेशानी,
रोज देख आँखों में भरे आँसू पानी।
ये किसानों श्रमिकों के बच्चे हैं सब,
रोटी कमाने निकले थे सब परदेश।
ऐसी आई वैश्विक महामारी कोरोना,
हर कोई परेशान डरा आता है रोना।
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
पूर्व सह परियोजना अधिकारी
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन,नेहरू युवा केंद्र संगठन
मानव संसाधन विकास मंत्रालय-भारत सरकार
संपर्क : 9415350596