आग


लघुकथा



कथाकार. ...डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम 


होली का समय था दहन के लिए गाँव मे होली लगाई जा रही थी कुछ शरारती लड़कों की एक टोली जिनके साथ राजीव भी रहता है ने मिलकर निश्चय किया कि होली दहन के दिन ही होली जलाने से पहले गाँव के समीप के गोबर के उपलों से बने बिटोडों मे से किसी एक मेआग लगायेंगे फिर होली दहन करेगे........

ऐसा ही किया गया जैसे ही आग बिटोडों मे लगी एक कुतिया तेजी से रोते हुए निकली लगातार रोते हुए घूमती रही. उसके तीन बच्चे आग का ग्रास हो चुके थे 

होली के ढोल बजने की आवाजों मे दब कर रह गयी उसकी आवाज होली दहन के अगले दिन जब किशनी उपले लेने गई तो तीन पिल्लों के कंकाल बिटोडों की राख मे देखकर दुखी मन घर आकर सभी को बताया निर्दोषों की मौत पर पूरा गाँव दुखी मन इस कृत्य की निन्दा कर रहा था अनजाने में हुए अपराध ने ऱाजीव व उसके साथियों के मन को झकझोर कर रख दिया. उन्होने उसी समय से बिना सोचे कोई भी कार्य न करने की शपथ ले ली उनका जीवन व व्यवहार पूरी तरह बदल गया था...............

डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद बिजनौर

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