जल से कल है

प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

जल से जीवन, जल ही जीवन,

जल है तो खिलता.वन-उपवन।

जल से ही धरा......सुहागन है--

जल से है,खुशहाली जन-जन।।

जल से है सावन... हरा-भरा,

जल से नदियों का हृदय भरा।

जल ही जलचर का जीवन हैं--

जल से सागर में.. भाव भरा।।


जल भरकर सजल होता नैन,

जल बिना जीव-जन्तु.. बेचैन।

जल से धरती की हरियाली--

जल से ही है सुखद दिन-रैन।।


जल से सावन का मौसम है,

जल से मिटता ताप-जलन है।

जल ज्येष्ठ माह अमृत समान-

जल है तो ये जग "औसम" है।।


जल एक तिहाई....काया है,

जल से जीवित सब माया है।

जल सूख गया तो क्या होगा?-

जल से वृक्षो की....छाया है।


जल मिलकर हमे बचाना है,

जल से कल स्वर्ग बनाना है।

जल संरक्षण संकल्प करें--

जलस्तर अब खूब बढ़ाना है।।


जल की वारिश अगली पीढ़ी,

जल के लिए न उतरे सीढ़ी।

जल कुएँ से न सुखने पाए--

जल जतन करें पीढ़ी-पीढ़ी।।


जल गाँवों का शृंगार बने,

जल प्यासे का आहार बने।

जल है तो कल सुन्दरतम है-

जल जीवन का आधार बनें।।


प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

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