नीलम राकेश
निहारिका गाउन पहने वालकनी में खड़ी थी । वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी । इस निर्णय पर पहुंचना उसके लिये आसान नहीं था। बहुत पीड़ादायी उतार-चढ़ाव से गुजरी थी वह । मानसिक यातना का एक दुरूह दौर था वह । परन्तु, एक बार निर्णय कर लेने के बाद सब कुछ बहुत सहज लग रहा था ।
नीरज, निहारिका को आवाज देता हुआ तेजी से बालकनी में आया। परन्तु उसे गाउन में खड़े देखकर, उसकी भृकुटी तन गई ।
‘‘ये क्या निहारिका तुम अभी तक तैयार नहीं हुई ? तुम्हें पता है न मैंने डाक्टर से टाइम ले रखा है । वहां से निपट कर मुझे फैक्टरी की एक जरूरी मीटिंग भी अटेन्ड करनी है । जल्दी करो । तुम लोग समय के महत्व को समझती ही नहीं हो ।’’
‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है ।’’ निहारिका ने दृढ़ शब्दों में नीरज की आंखों में देखते हुये जवाब दिया ।
पल भर को भौचक्का रह गया नीरज । डरी, सहमी सी उसकी पत्नी अचानक बदल कैसे गई । परन्तु अपने को सहेज कर वह चीखा, ‘‘मुझे ‘‘नहीं’’ सुनने की आदत नही । फौरन तैयार हो जाओ ।’’
‘‘नीरज, मैं फैसला कर चुकी हॅूं । एक बार तुम्हारे कहने पर मैं अपनी कोख उजाड़ चुकी हूंॅ । यदि आने वाली संतान लड़की है, तो इसमें उसका क्या दोष है? उस अजन्मी को मृत्यु दण्ड क्यों दे रहे हो ? .....और नीरज क्या गारण्टी है कि अगली बार लड़का होगा । कब तक तुम अपनी ही बेटियों की हत्या करते रहोगे ?’’
‘‘जब तक बेटा नहीं होगा, मैं बेटी को नहीं आने दूंगा समझी तुम।’’ बौखलाया सा नीरज गरजा ।
‘‘ठीक है, तुम पिता का कर्तव्य नहीं निभा पा रहे तो मत निभाओ, लकिन मैं मॉं हूं और मंॉ होने का फर्ज निभाऊंगी । मैं अपनी बेटी को जन्म दूंगी और बिना तुम्हारी मदद के उसे पालूंगी । हां, एक बात और मैं तुम्हारा घर छोड़ कर जा रही हूं, क्योंकि जो पुरूष पिता का कर्तव्य नहीं निभा सकता उसे पति का अधिकार देने को मैं तैयार नहीं । तुम जब चाहो तलाकनामा भेज देना। मैं हस्ताक्षर कर दूंगी ।’’ कहती हुई निहारिका सधे कदमों से कमरे में प्रविष्ट हो गई ।
अवाक नीरज इस निर्ण्ाय की मार झेलता सा खड़ा रह गया ।
नीलम राकेश
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