प्रकृति के साथ......
बाबा के बागान में, क्यारी केशर आम।
पुलकित कर देता हृदय, बिनु हर्रे बिन दाम।
बिनु हर्रे बिन दाम, पंक्षियाँ करती चह चह
गेंदा और गुलाब, भुवन पर महके मह मह।
कह 'गौतम' दिल खोल, मोल करता है ढाबा।
झोली भर आशीष, बुला कर देते बाबा।।
"पद"
बादल कृष्ण बिना क्यों आए
जा रे मेघा अपने अम्बर, गोपिन पाठ पढ़ाए।
सावन सूखा छोड़ गयो री, भरि बैसाख भिगाए।।
जेठ तपन छू मंतर भै क्यों, माघी ठंड थिराए।
क्यों प्रकृति करवट को व्याकुल, मानव चित घबराए।।
बढ़े रोग प्रतिरोग भयंकर, जीवन जिया न जाए।
इक संदेशा प्रभु से कहना, गोवर्धन कत छाए।।
अब तो 'गौतम' की सुध ले लें, बिनु ऋतु बूँद न भाए।
उथल पुथल दुनिया भइ सारी, आएं चक्र चढ़ाए।।
गीतिका
उठे हैं हाथ दोनों जोड़ने को छोर दुनियाँ का
दहाड़े भर रहा है दंभ दल पुरजोर दुनियाँ का
न सागर में जगह मिलती न पर्वत ही पिघलते हैं
कहाँ जाएं इबादत के लिए है शोर दुनियाँ का।।
सुनामी आ ही जाती है कहीं भी कंदराएं हो
शिलाएं टूट जाती है भले हो डोर दुनियाँ का।।
उपवन रूठ जाते है कहाँ माली गिला करता
पखेरू चहचहाते हैं घटा घनघोर दुनियाँ का।।
हवाएं भी नहीं जाती जहाँ पर चौकसी रहती
बुझा दीपक बता कैसे कहाँ है चोर दुनियाँ का।।
सभी ये जानते हैं मान औ सम्मान घर घर है
निशा करवट न बदले तो रुका क्या भोर दुनियाँ का।।
कहीं तो चूक है 'गौतम' गिरह में झाँक ले अपने
गरुड़ के साथ बगिया में नचाते मोर दुनियाँ का।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी