कुंडलिनी छंद

 


डाॅ बिपिन पाण्डेय

गलती से  करना नहीं ,बंद कभी  संवाद।

बिना बात रिश्ते सभी, हो जाते  बरबाद।

 हो जाते बरबाद,शाम रिश्तों की ढलती।

जमी दिलों में  बर्फ,बात करने से गलती।।


धरती  ने  हमको  दिए ,हैं  अनेक उपहार।

करें संयमित भोग सब ,व्यक्त करें आभार।

व्यक्त करें  आभार ,अपेक्षा कब है  करती।

मंगलकारी  रूप,मगर नित वसुधा  धरती।।


पाती पाकर  प्रियतमा,उठी खुशी से झूम।

लोगों  से  नज़रें  बचा , रही  बैठकर  चूम।

रही  बैठकर  चूम ,भाग्य पर है  इठलाती।

सोचे पिय  का पत्र, कहाँ हर  कोई पाती।।


डाली जब विश्वास में, शक ने एक दरार।

देखा हँसता खेलता,बिखर गया परिवार।

बिखर गया परिवार ,दुखी बैठा है माली।

पत्र  पुष्प  से हीन ,देखता  रहता  डाली।।

        

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