सुन सुन
कोरोना सुन।
प्रतिशोध की आग में देश
सुलग रहा है।
बदले की आग में
बंग-भूमि जल रही है।
ये कोरोना
तू कहाँ सो रहा है?
उस जगह क्यों नहीं जाता,
जहाँ-जहाँ ऐसा हो रहा है।
बदले की आग में किसी का
घर-द्वार जल रहा है।
इन्सान से इन्सान
भय खा रहा है
अपने स्वार्थ की खातिर
लोग मानवता भूल गये हैं।
माना कि तू अच्छे बुरे
जाति धर्म में भेद नहीं करता।
लेकिन अब वक्त आ गया है,
भेद करना जरूरी हो गया है।
अपने नाम को सार्थक करो ना,
ये कोरोना तुम ही कुछ करो ना।
अंधे हो गए हैं सब सत्ता के दलाल,
हत्या कर होना चाहते मालामाल।
आदमी से ज्यादा कुर्सी
कुर्सी प्यारी हो गई है।
ममता के राज्य में
निर्ममता की हद हो गई है।
ये कोरोना छोड़ दो निर्दोषों पर
अब तो कहर ढाना
है तेरे पास शक्ति तो
दोषियों को चुन-चुन के मारोना।
दिनेश चन्द्र प्रसाद " दीनेश"