बचपन

 विधा-बालगीत

    

          



बचपन के वे दिन कितने हसीन थे,

हम एक दूसरे के कितने करीब थे।

वह लड़ना-झगड़ना,फिर मान जाना,

हँसकर दोस्तों को गले लगाना।


वह झूलों में झूलना,,पतंग उड़ाना

बहाना बनाकर घर से भाग जाना,

कितनी खुशी दिलाते थे,

 आज वे दिन कितने याद आते है।


छोटी-छोटी सी खिलौनों के लिये कैसे मचल जाते थे,

भीग बारिश में कितने मजे उड़ाते थे।

पापा की मार पर माँ की डांट भी अब कितने याद आते हैं।


काश लौट आता फिर से बचपन,

कोई हमें झूलों में फिर झूलता।

बाँहो में भर माँ फिर मेरे गालों को चूमती,

"बचपन" फिर यह शब्द मेरे कानों गूँजती।


मीना माईकेल सिंह

कोलकाता

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