सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
मन मेरा अहसासों से गुजरता है जब भी,
कभी हर्ष करता है, विषाद करे मन कभी।
अहसास बोध कराते हैं मुझे अपने होने का,
अहसास यादें है कुछ खोने का कुछ बोने का।।
यह अहसास कभी मेरे मन को जलाते हैं,
कुटिलता पर मेरी कभी कोड़े बरसाते हैं।
अहसास झकझोरते हैं अन्तर्मन को मेरे,
सत्मार्ग दिखाते हैं कभी मैले मन को मेरे।।
आशा-निराशाा, उल्लास-विषाद, हार-जीत,
अहसास जीवन के अनेक भाव दिखाते हैं।
कभी दम तोड़ती ख्वाहिशें नजर आती हैं,
कभी अहसास विजयोल्लास के गीत गाते हैं।।
'अहसास हूँ मैं' यह कहकर अहसास कराते हैं।
अहसास अक्सर मन को विभोर कर जाते हैं।।
मानव के सच्चे साथी होते अच्छे-बुरे अहसास,
अहसास ही मानव को सदा सीख दे जाते हैं।।
सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
११६, राजपुर मार्ग,
देहरादून ।
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