इच्छाएं

डाॅ. पुनीता त्रिपाठी

इच्छाएँ नहीं मरती

इन इच्छाओं से दबकर

मानव मन मरता है,

उसका तन मरता है ||


 फिर भी इन अधूरी 

इच्छाओं की चाह में 

 मनुष्य जीता रहता है

उसका वजूद जीता है||


और अन्तत:विलीन 

हो जाता है, पर पूर्ति 

नहीं होती ,इन इच्छाओं के भार से,

चला जाता है ,मानव संसार से ||


स्वरचित__ डाॅ. पुनीता त्रिपाठी

शिक्षिका, महराजगंज उ. प्र

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