दीपक शुक्ल 'चिराग'
कैसे नीचों से अब वास्ता है पड़ा।
देखो सांसों का व्यापार वो कर रहे।
काला बाजारी करते प्राण वायु की वो।
जन के जीवन से खिलवाड़ वो कर रहे।
ऐसे नीचों नराधमों को अब।
बीच बाजार करो बेनकाब तुम।
खत्म उनको करो जो छीने सांसें यहां।
ऐसे नीचों को अब दो सजा आज तुम।
एक हो तो कहीं शिनाख्त भी हो।
भेड़ों की भीड़ में भेड़िये हैं घुसे।
कोई बाहर अब ज़ख्म न दे रहा।
ये निकम्मे इसी धरती पर हैं बसे।
ऐसे चोरों को तुम जमाखोरों को तुम।
मारो सीधा लाके अब बाजार में।
ताकि जुर्रत न कोई कर अब सके।
स्वास्थ्य, भूख और सांसों के व्यापार में।।
दीपक शुक्ल 'चिराग'
संस्थापक
काव्यांजलि "एक अनूठा आरंभ" विश्व मंच