मौन रह कर सब सहा जाता नहीं



 क्या कहें अब कुछ कहा जाता नहीं

बिन कहे भी तो,रहा जाता नहीं,


ज़िन्दगी की धारा है, ऐसे मोड़ पर

संग उसके अब बहा जाता नहीं,


वक्त ऐसा आ गया है ,अब यहां,

मौन रह कर सब सहा जाता नहीं,


जा रहे हैं लोग ऐसी भीड़ में अब,

जान कर कोई वहां जाता नहीं,


चार कांधे भी मयस्यर अब कहां,

देखने तक अब कोई आता नहीं,


बस सांसें भी रूक रूक के चल रही

इंसान का इंसान से कोई नाता नहीं


लगता है कि अनाथ है सारे यहां

कोई रहबर यहां , कोई विधाता नहीं


संतोषी दीक्षित 

कानपुर

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