कुछ अच्छे, तो कुछ बुरे
मन के फितूर निकलते रहें |१|
कुछ हँस के, कुछ रो कर
हम तुम गले मिलते ही रहें |२|
कुछ सुन कर, कुछ सुनाकर
फिर भी हम मचलते ही रहें |३|
कुछ झुक के, कुछ झुकाकर
जिन्दगी तुझपे हँसते ही रहें |४|
कुछ गा के,कुछ गुनगुना कर
बर्फ से भी हम जलते ही रहें |५|
स्वरचित__ डाॅ. पुनीता त्रिपाठी
शिक्षिका, महराजगंज उ. प्र.