हम गांधी के तीन बंदर

 

डाःमलय तिवारी 

हम गाँथी के बन्दर अपनी, नियति मानकर रेंक रहे हैं।

रंगमहल में बैठ के कुछ, दौलत की रोटी सेंक रहे हैं। 


जीतेगा कोई धर्मराज इस देश में कैसे, 

दुर्योधन के लिए आज भी, शकुनी पासा फेंक रहे हैं।। 


मुहताज हैं कुछ दानें दानेंं की आस लगाये बैठे हैं। 

कुछ लोग दूसरों के हक पर भी नजर गड़ाये बैठे हैं। 

अस्मत नारी की कैसे नीलाम न हो पग पग पर, 

जब हर चौराहे पर शकुनी ही दाँव बिछाये बैठे हैं ।।

       डाःमलय तिवारी 

बदलापुर जौनपुर

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