मनाने रूठने के सिलसिले अच्छे नहीं लगते।
मुहब्बत के तुम्हारे कायदे अच्छे नहीं लगते।
तबाही के ये मंज़र जलजले अच्छे नहीं लगते।
कफस में क़ैद के ये सिलसिले अच्छे नहीं लगते।
बहुत है मुख्तसर ये जिंदगी फ़िर रंजिशे कैसी।
अदावात के तुम्हारे सिलसिले अच्छे नहीं लगते।
निभाया फासलों में उम्र भर तेरी मुहब्बत को।
तुम्हारे बेवजह अब फासले अच्छे नहीं लगते।
मिटा डाला तुम्हारी ज़ुस्तज़ु में खुद को ही हमने
की रिश्तों में तुम्हारे फ़ायदे अच्छे नहीं लगते।
मुहब्बत से निभाया उम्र भर हमने मुहब्बत को।
तुम्हारी बेरुखी के राबिते अच्छे नहीं लगते।
गमों के सिलसिले ये जलजले अच्छे नहीं लगते।
लगे चेहरे पे मुखौटे हमें अच्छे नहीं लगते।
दिखाया जख्म जब दिल के उन्हें ऐतबार न आया।
खड़े यूं दूर से वो घूरते अच्छे नहीं लगते।
निभाना ही नहीं था जब तुम्हे क्यूं कर लिया तुमने
सुनो ये बेवजह के वायदे अच्छे नहीं लगते ।
गया।दिन का सकूं रातों का मेरे नींद भी खोया
मुसलसल रात भर के रतजगे अच्छे नहीं लगते।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश