सिंहासन क्यों हत्यारा हो

 


कहां बैठते जन के नायक

भारत भूमि के अधिनायक

नयनों से पल-पल खोंजू

दिन-रैन प्रतिपल खोंजू

सेवक पीड़ का दम्भ भरते

चीख चीख कर थे कहते

है क्यो हाथों पर हाथ धरे

कदम दो कदम ना साथ चले

मृत्यु प्रतीक्षा करें द्वार पर

जीवन मौत की हार पर

आसान क्यों प्यारा हो

सिंहासन क्यों हत्यारा हो

प्राणवायु पर लगे प्रतिबंध

स्वांस का हो शोषण से अनुबंध

कल-कल सरिता बनी है आशु

कितना दर्द कलम से बांचु

एठे है मिल कुछ यार

जीवन रक्षा काला बाजार

कांटे पेड़ छीने छाया

घेरे रखे कौन सी माया

सम्पर्क सारे बन्द पड़े

शायद यह धुंध छंटे

लेकिन धुंध को छँटना होगा

आँचल को समेटना होगा

हो रहा जो घातक प्रहार

चुप्प बैठे जो सरकार

आसान से उसे उतरना होगा

टूटकर फिर सम्भलना होगा

स्वास्थ्य शिक्षा और सुरक्षा

है जन का मौलिक अधिकार

मांगने से मिले नही अगर

मिलकर फिर लड़ना होगा

वक्त प्रतिकूल गुजरेगा

हंसी से मुखड़े खिलेगा

छटेगा छाया अंधेरा भी

आएगा नया सवेरा भी

धैर्य मन मे रखो वीर

धीरज धारण हो गम्भीर

चेतावनी प्राकृति की जानो

संकट समय को पहचानो

निकलो न घर से आज

भूलो न भयंकर घाव

संभलो या छोड़ो जहान

रहो घर मे या त्यागो प्राण

खुद बचो या तो मरो

रहे सदा तुम्हे यह भान।

सोनू कुमार मिश्रा

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