बहुत सताते थे वह कागज के टुकड़े,
क्या क्या नहीं जलाते थे वह कागज के टुकड़े ।।
भविष्य के सपने कर गए थे चकनाचूर,
तेरे हाथों के लिखे शब्द बने थे नासूर ।।
करूँ भी याद क्या तू बता क्या याद करूँ,
वह झरनों की बातें थीं अब वारिश से डरूँ।।
खाक हो फिर जन्मा फिर फिर जलने के लिए,
तेरे खत जले तो जले खाक होने के लिए।।
कभी आग कभी जल बना और कभी हवा हो गया,
तेरी यादों का सिलसिला मुझे क्या क्या बना गया ...
🌹सुशील कुमार भोला
जम्मू