मुक्तक

पुरुषोत्तम राम

महेन्द्र सिंह राज 

है तुम्हें नमन हे कमल नयन, 

तव चरणों में मम माथ रहे। 

सुख दुःख दोनों ही हालत में, 

मम सर पर तेरा हाथ रहे।

वानर भालू की सेना ले,

लंकापति का संहार किया। 

विनती तुमसे है पुरुषोत्तम,

सब जन पर तव कर नाथ रहे(1)


पूरी दुनियां को तुमने ही,

मानवता का पाठ पढा़या।

अपराजित खर दूषण को भी

वध कर अपना नाम बढा़या

जिनके पद स्पर्श मात्र से, 

पाहन से स्त्री बनी अहिल्या। 

माँ पूजन में फूल पडे़ कम

निज नयनों की भेंट चढा़या।।(2)


मामा मारिच हेम हिरन बन,

पर्ण कुटी के सम्मुख आया। 

वह चमकीला सा कनक हिरण  

माता सीता को मन भाया

राम से बोली हे ममनाथ,

मुझको इसका चर्म चाहिए।

मृग द्वारा फेंकी माया ने,

श्री राम लखन मन भरमाया।।(3)


धनुष बाण ले राम चले अब,

कनक हिरन के पीछे धाये।

कहीं कहीं पर दिखे कनक मृग, 

कहीं कहीं ओझिल हो जाये।

 लुका छिपी के इस खेला में,

बहुत दूर तक धाये भगवन।

थका थका कर उस शावक को, 

निज बाणों से मार गिराये।।(4)


महेन्द्र सिंह राज 

मैढी़ चन्दौली उ. प्र. 



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