ग़ज़ल


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' 

दिलों में सबके निश्छल प्रीति पले मेरे प्यारों।

खिले चाँदनी रात फिर ना ढले मेरे प्यारों।



बहुत अक्ता गये यही बंदिशों की जिन्दगी है, 

बस एक सरल आसां जीवन चले मेरे प्यारों। 


क्यों दुनिया जहां में यह मर्ज बढ़ता जा रहा है, 

अब तो बीमारी के ये दिन जले मेरे प्यारों।


काम बन्द, धंधा बन्द लोग बेकार बैठे हैं,

अब तो यह जिल्लत भुखमरी टले मेरे प्यारों।


सुनहरी सहर फिर से लौट आए मेरे रहबर,

अब तो सुकूं ऐ जिन्दगानी फले मेरे प्यारों।


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' 

इन्दौर मध्यप्रदेश

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